सुप्रीम कोर्ट ने 2 जुलाई को एक अहम फैसला सुनाया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि किसी व्यक्ति की मौत उसकी खुद की लापरवाही या तेज रफ्तार में ड्राइविंग के कारण होती है, तो उसके परिजनों को मोटर वाहन अधिनियम के तहत बीमा कंपनी मुआवजा देने के लिए बाध्य नहीं होगी। यह फैसला एक ऐसे मामले में आया, जिसमें एक व्यक्ति की रैश ड्राइविंग के कारण हादसे में मौत हो गई थी और उसके परिजनों ने 80 लाख रुपये के मुआवजे का दावा किया था।
क्या था मामला?
यह केस 18 जून 2014 को हुए एक सड़क हादसे से जुड़ा है, जब एक व्यक्ति अपनी Fiat Linea कार चला रहा था। कार में उसके साथ उसके पिता, बहन और भतीजी भी सवार थे। हादसे में उसकी मौत हो गई। परिजनों का दावा था कि टायर फटने से गाड़ी पलट गई, लेकिन पुलिस जांच और चार्जशीट में सामने आया कि हादसा उसकी लापरवाही और तेज रफ्तार में ड्राइविंग की वजह से हुआ।
80 लाख रुपये का दावा ठुकराया
मृतक की पत्नी, बेटा और माता-पिता ने बीमा कंपनी यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस के खिलाफ 80 लाख रुपये के मुआवजे का दावा किया था। उन्होंने दावा किया कि मृतक की मासिक आमदनी 3 लाख रुपये थी और वह परिवार का एकलौता कमाऊ सदस्य था।
हालांकि, मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) ने यह दावा खारिज कर दिया। अधिकरण ने कहा कि मृतक एक “सेल्फ टॉर्टफीजर” (Self-Tortfeasor) था यानी वह खुद अपनी मौत का जिम्मेदार था, इसलिए उसे ‘पीड़ित’ नहीं माना जा सकता।
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने दी मंजूरी
कर्नाटक हाई कोर्ट ने अधिकरण के फैसले को सही ठहराया और सुप्रीम कोर्ट के 2009 के ‘निंगम्मा बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी’ केस का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि यदि दुर्घटना मृतक की अपनी गलती से हुई हो, तो मुआवजा नहीं दिया जा सकता।
अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले पर मुहर लगाते हुए कहा कि मोटर वाहन अधिनियम का मकसद निर्दोष पीड़ितों की मदद करना है, न कि उन लोगों के परिवारों को मुआवजा देना जो खुद अपनी जान जोखिम में डालते हैं।