चमत्कारिक उपचार करने का आश्वासन देकर उपचार करने एवं उपचार के दौरान मृतिका की मृत्यु के मामले में महिला आरोपी को गरियाबंद पुलिस ने किया गिरफ्तार
गरियाबंद। चमत्कारिक उपचार करने बहाने प्रार्थिया सुनिता सोनवानी निवासी पण्डरी रायपुर हाल महासमुंद पचेड़ा के द्वारा थाना राजिम उपस्थित आ कर रिपोर्ट दर्ज कराया कि प्रार्थिया की पुत्री की मानसिक स्थिति ठीक नही होने के कारण सुरसाबांधा निवासी ईश्वरी साहू के पास पूजापाठ के माध्यम से उपचार करवा रही थी। आरोपी महिला ईश्वरी साहू के द्वारा प्रार्थिया की पुत्री को अपने घर सुरसाबांधा में रख कर चमत्कारिक उपचार के बहाने डारा धमका कर ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित करती थी। जो पीड़िता के उपर आर्युवेदिक उपचार के बहाने चमत्कारी तेल और गरम पानी डालकर अपने पैरो से मृतिका के सीने को मसलती थी और ईसाई धर्म का प्रार्थना करवाती थी।
चमत्कारिक उपचार झाड़ फूंक बना मौत का कारण: धर्मांतरण और हैवानियत से युवती की हुई मौत!
प्रार्थिया की रिपोर्ट पर प्रथम दृष्टिया अपराध धारा छ.ग. धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2006 की धारा 4 व औषधी और चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम 1954 की धारा 7 का अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया। उपचार दौरान पीड़िता की मृत्यु होने से थाने में मर्ग कायम कर शार्ट पीएम रिपार्ट प्राप्त किया गया। जो पीएम रिपार्ट में पसली की हड्डी टुटने एवं दबाव के कारण मृत्यु होना लेख किया गया है। जिस पर धारा 105 बीएनएस एक्ट जोडी गई।
इस प्रकार गम्भीर मामले की सूचना मिलते ही गरियाबंद पुलिस द्वारा त्वरित कार्यवाही करते हुए तत्काल गंभीर धाराओं में अपराध पंजीबद्ध कर आरोपी महिला को समक्ष गवाहन के विधिवत गिरफ्तार कर माननीय न्यायालय के समक्ष पेश किया जा रहा है।
गरियाबंद जिले में अंधविश्वास, झाड़-फूंक और कथित धर्मांतरण की एक सनसनीखेज घटना सामने आई है। एक 41 वर्षीय महिला पर आरोप है कि उसने मानसिक रूप से अस्वस्थ युवती का इलाज करने का झांसा देकर उसे अपने घर में रखा, प्रताड़ित किया, जबरन धर्मांतरण का दबाव बनाया और इलाज के नाम पर ऐसे हैवानियत भरे तरीके अपनाए कि युवती की मौत हो गई। यह मामला सामने आते ही पूरे इलाके में सनसनी फैल गई है। पुलिस ने आरोपी महिला को गिरफ्तार कर लिया है।
यह घटना गरियाबंद जिले के राजिम थाना क्षेत्र अंतर्गत सुरसाबांधा गांव की है। मृतिका की मां सुनीता सोनवानी, जो वर्तमान में महासमुंद के पचेड़ा में निवासरत हैं, ने थाना राजिम में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी मानसिक रूप से अस्वस्थ थी और उन्होंने सुरसाबांधा निवासी ईश्वरी साहू के पास झाड़-फूंक और पूजा-पाठ के माध्यम से इलाज कराने का निर्णय लिया।
चमत्कारी इलाज के नाम पर दर्दनाक यातना
सुनीता सोनवानी ने पुलिस को बताया कि ईश्वरी साहू ने उनकी बेटी को अपने घर में इलाज के बहाने रखा। वहां न केवल झाड़-फूंक की गई, बल्कि उस युवती को डराया-धमकाया गया, जबरन ईसाई प्रार्थनाएं करवाई गईं और मानसिक दबाव बनाया गया कि वह ईसाई धर्म अपना ले।
सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई है कि आरोपी महिला ने “चमत्कारी तेल” और “गर्म पानी” का प्रयोग करते हुए मृतिका के शरीर पर अमानवीय तरीके से अत्याचार किए। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, युवती की पसलियां टूटी थीं और उसके सीने पर दबाव के कारण मृत्यु हुई। बताया जा रहा है कि आरोपी महिला अपने पैरों से पीड़िता के सीने को मसलती थी और इसी प्रक्रिया में उसकी जान चली गई।
आस्था की आड़ में अंधविश्वास और धर्मांतरण का जाल
यह मामला सिर्फ अंधविश्वास तक सीमित नहीं है। आरोपी पर धार्मिक स्वतंत्रता के हनन का भी गंभीर आरोप है। छत्तीसगढ़ धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2006 की धारा 4 तथा औषधि और चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 की धारा 7 के तहत प्रारंभिक अपराध पंजीबद्ध किया गया था। लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में युवती की पसलियों के टूटने और शारीरिक दबाव से मौत की पुष्टि होते ही पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 105 भी जोड़ दी है, जो अप्राकृतिक मृत्यु और प्रताड़ना की श्रेणी में आता है।
गरियाबंद पुलिस की त्वरित कार्रवाई
मामले की गंभीरता को देखते हुए गरियाबंद पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपी महिला ईश्वरी साहू को विधिवत गिरफ्तार कर लिया है। महिला की उम्र 41 वर्ष है और वह सुरसाबांधा गांव की निवासी है। आरोपी को समक्ष गवाहों के साथ गिरफ्तार कर न्यायालय में प्रस्तुत किया गया।
समाज में जागरूकता की कमी और प्रशासन की जिम्मेदारी
यह मामला केवल एक अपराध नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी है। आज भी छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में झाड़-फूंक, चमत्कारिक इलाज, और तथाकथित धार्मिक उपचारों के नाम पर लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ हो रहा है। महिलाओं और मानसिक रूप से कमजोर लोगों को ऐसे ठगों और अंधविश्वास फैलाने वालों से सबसे अधिक खतरा है।
इस पूरे घटनाक्रम ने न सिर्फ गरियाबंद, बल्कि पूरे राज्य को झकझोर दिया है। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या स्थानीय प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और सामाजिक संगठनों ने समय रहते ऐसे गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए कदम उठाए?
क्या होगा आगे?
पुलिस अब इस बात की भी जांच कर रही है कि क्या यह अकेली घटना है या फिर इसके पीछे कोई संगठित गिरोह या धर्मांतरण नेटवर्क भी सक्रिय है। यदि ऐसा कुछ सामने आता है, तो यह मामला राज्य में अंधविश्वास और धर्मांतरण की राजनीति के केंद्र में आ सकता है।
निष्कर्ष:
आस्था और इलाज के नाम पर हो रहे ऐसे अपराधों पर नकेल कसने की जरूरत है। इस घटना ने साबित कर दिया है कि जब तक समाज में शिक्षा, जागरूकता और वैज्ञानिक सोच नहीं बढ़ेगी, तब तक ऐसे चमत्कारी इलाज जानलेवा साबित होते रहेंगे।