CG news: नानी बनीं चार कमार बच्चों की उम्मीद की रोशनी गरियाबंद जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत बारुका के कमार पारा में रहने वाली विशेष पिछड़ी जनजाति की एक बच्ची की कहानी आज पूरे समाज के लिए सोचने पर मजबूर कर रही है। आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली करीना कमार के जीवन में बचपन से ही संघर्ष है — मां की हत्या हो चुकी है और पिता हत्या के आरोप में जेल में हैं। चार भाई-बहनों के साथ बेसहारा हुई करीना को जीवन का सहारा मिला अपनी नानी फगनी बाई कमार के रूप में।
नानी बनीं चार कमार बच्चों की उम्मीद की रोशनी गरीबी, अकेलापन और संघर्ष के बीच फगनी बाई निभा रही फरिश्ते जैसी भूमिका
फगनी बाई न केवल इन बच्चों की देखरेख कर रही हैं, बल्कि अपनी बुजुर्ग अवस्था और अत्यधिक गरीबी के बावजूद उन्हें स्कूल भेजती हैं और उनका पालन-पोषण कर रही हैं। उनका खुद का घर भी अभी कच्चा और झोपड़ीनुमा है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मंजूर घर अभी निर्माणाधीन है, जो बारिश के कारण पूरा नहीं हो पाया है। तब तक उन्हें इसी एक कमरे की झोपड़ी में ही गुजारा करना होगा।
संघर्ष से बनी मिसाल
फगनी बाई कहती हैं, “शायद भगवान ने मेरे बुढ़ापे में यही लिखा था, जो मुझे निभाना है। जब तक जान है, मैं इन बच्चों के लिए जिम्मेदारी निभाती रहूंगी।” उनके इस साहस और ममता को देखकर गांव के लोग उन्हें फरिश्ता कहते हैं।
प्रशासनिक सहायता की ज़रूरत
ऐसी परिस्थिति में यह जरूरी हो जाता है कि प्रशासन इन बच्चों को चिन्हांकित कर विशेष सहायता और मार्गदर्शन दे। सरकार द्वारा कमार जनजाति जैसे विशेष पिछड़ी जनजातियों के लिए कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं, लेकिन जानकारी और शिक्षा के अभाव में ये योजनाएं इन जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पातीं।
संघर्ष के बीच उम्मीद की किरण
फगनी बाई का यह त्याग और समर्पण बताता है कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर इरादा मजबूत हो तो हर टूटे हुए परिवार को भी नया रास्ता दिया जा सकता है। ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें सरकार और समाज से सहयोग मिलना ही चाहिए, ताकि उनके जैसे संघर्षशील लोग और बच्चों की उम्मीदें जीवित रह सकें।
नानी बनीं चार कमार बच्चों की उम्मीद की रोशनी गरियाबंद जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत बारुका के कमार पारा में रहने वाली विशेष पिछड़ी जनजाति की एक बच्ची की कहानी आज पूरे समाज के लिए सोचने पर मजबूर कर रही है। आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली करीना कमार के जीवन में बचपन से ही संघर्ष है — मां की हत्या हो चुकी है और पिता हत्या के आरोप में जेल में हैं। चार भाई-बहनों के साथ बेसहारा हुई करीना को जीवन का सहारा मिला अपनी नानी फगनी बाई कमार के रूप में।
नानी बनीं चार कमार बच्चों की उम्मीद की रोशनी गरीबी, अकेलापन और संघर्ष के बीच फगनी बाई निभा रही फरिश्ते जैसी भूमिका
फगनी बाई न केवल इन बच्चों की देखरेख कर रही हैं, बल्कि अपनी बुजुर्ग अवस्था और अत्यधिक गरीबी के बावजूद उन्हें स्कूल भेजती हैं और उनका पालन-पोषण कर रही हैं। उनका खुद का घर भी अभी कच्चा और झोपड़ीनुमा है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मंजूर घर अभी निर्माणाधीन है, जो बारिश के कारण पूरा नहीं हो पाया है। तब तक उन्हें इसी एक कमरे की झोपड़ी में ही गुजारा करना होगा।
संघर्ष से बनी मिसाल
फगनी बाई कहती हैं, “शायद भगवान ने मेरे बुढ़ापे में यही लिखा था, जो मुझे निभाना है। जब तक जान है, मैं इन बच्चों के लिए जिम्मेदारी निभाती रहूंगी।” उनके इस साहस और ममता को देखकर गांव के लोग उन्हें फरिश्ता कहते हैं।
प्रशासनिक सहायता की ज़रूरत
ऐसी परिस्थिति में यह जरूरी हो जाता है कि प्रशासन इन बच्चों को चिन्हांकित कर विशेष सहायता और मार्गदर्शन दे। सरकार द्वारा कमार जनजाति जैसे विशेष पिछड़ी जनजातियों के लिए कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं, लेकिन जानकारी और शिक्षा के अभाव में ये योजनाएं इन जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पातीं।
संघर्ष के बीच उम्मीद की किरण
फगनी बाई का यह त्याग और समर्पण बताता है कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर इरादा मजबूत हो तो हर टूटे हुए परिवार को भी नया रास्ता दिया जा सकता है। ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें सरकार और समाज से सहयोग मिलना ही चाहिए, ताकि उनके जैसे संघर्षशील लोग और बच्चों की उम्मीदें जीवित रह सकें।