छुरा। गरियाबंद जिले की बंजर जमीन को हराभरा कर सोने उगलने वाली खरपतवार चरोटा से अंचलवासी अंजान है, लेकिन इसकी विदेशों में काफी पूछपरख है। जानकार व्यवसायी इसे विदेश पहुंचा रहे हैं। जहां मांग इतना है कि, इसकी पूर्ति नहीं हो पा रही है। चरोटा का पौधा व बीज भले ही आम लोगों के लिए खरपतवार है, लेकिन विदेश में बीज व दाल की डिमांड खूब है।
यह पौधा शहर व गांव में बंजर जमीन और सड़क के किनारे प्राकृतिक तौर पर उगता है। इसे उगाने के लिए हल चलाने की जरूरत नहीं है, और न ही किसी प्रकार के धन व मेहनत खर्च करने को है। चरोटा बीज व दाल के व्यवसाय से जुड़े व्यापारी हरीहर देव, महेशदास, दिलीप जयसवाल ने बताया कि चरोटा का बीज कीमती है, जिसे उनके फर्म द्वारा खरीदा जाता है। मशीन से उसे दाल बनाकर चाइना, जर्मनी और वियतनाम को भेजा जाता है। यह बीज प्रोटिन से परिपूर्ण होता है। जिससे कई तरह की सामाग्री बनती है। चरोटा बीज को 25- 30 रुपये प्रति किलो भाव से खरीदा जाता है। यह बीज बस्तर जिले के ग्रामीण क्षेत्र में सबसे ज्यादा आवाक होती है। विदेश में कई मशीन व पलांट लगी है, जिसमें विभिन्न प्रकार की सामाग्री बनाई जाती है।
उल्लेखनीय है कि क्षेत्र के ग्रामीण इस पौधे के पत्ते का उपयोग भाजी की सब्जी के रुप में करते हैं। लेकिन अभी ग्रामीण धान की कटाई और बेचाई में व्यस्त है जिसके कारण चरोटा की खरीदा कम देखने को मिल रही है । धान बेचने के बाद ग्रामीणों या खासकर महिलाओ द्वारा चरोटा को काटकर उसे सुखाया जायेगा , सूखने के बाद उसे सड़क के ऊपर व्यवस्थित तरीके से रख दिया जायेगा ताकि गाड़ियों के चलने से पौधे से बीज अलग हो जाए । बीज के अलग होने जाने के बाद बीज को एकत्रित करके उसे चरोटा व्यापारियों के पास बेच दिया जाता है । व्यापारियों ने बताया कि, चरोटा की विदेश में बहुत मांग है,इसके बीज से कॉस्मेटिक, विभिन प्रकार के औषधि निर्माण केटलफीड( मुर्गी का दाना) कॉफी व कई सामाग्री के निर्माण में उपयोग किया है। पिछले दो साल पहले यह 10 से 15 रुपये किलो बिक रहा था लेकिन मांग अधिक और पूर्ति कम होने के कारण दाम आसमान पर है। वनोपज मार्केट में प्रति किलो 25- 30 रुपया है। चरोटा से अनेक प्रकार के औषधियों, खाद्य सामाग्री, कई प्रकार के प्रोटीन युक्त पाउडर , कॉफी व बवाशीर के उपचार की दवाईयों सहित कई सामग्रियों के निर्माण में होता है।