छुरा। नगर के बस स्टैंड वीरांगना रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस गोडी़ धर्म संस्कृति संरक्षण समिति एवं आदिवासी समाज द्वारा मनाया गया सभी समाज प्रमुखों ने विधिवत पूजा अर्चना कर रानी दुर्गावती के जयघोष के साथ किया गया।कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आदिवासी समाज के प्रांतीय उपाध्यक्ष व वर्तमान जनपद सदस्य नीलकंठ ठाकुर ने कहा वीरांगना महारानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 में हुआ था।उनका राज्य गोंडवाना में था बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ईसवी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण ही उनका नाम दुर्गावती रखा गया नाम के अनुरूप ही वह तेज, साहस, शौर्य और सुंदरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गई महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से उनका विवाह हुआ था। दुर्भाग्यवश विवाह के 4 वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। सामाजिक कार्यकर्ता पुनितराम ठाकुर ने कहा रानी दुर्गावती भारत की उन वीरांगनाओं में से एक हैं जिन्होंने अपने शौर्य और साहस और वीरता से एक नई इबारत लिखी रानी दुर्गावती नहीं किसी के आगे घुटने नही टेके और मातृभूमि के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिया।उस समय दुर्गावती का पुत्र नारायण 3 वर्ष का ही था अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया।वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था।सूबेदार बाजबहादुर ने भी रानी दुर्गावती पर बुरी नजर डाली थी लेकिन उसको मुंह की खानी पड़ी।दूसरी बार के युद्ध में दुर्गावती ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया और फिर वह कभी पलटकर नहीं आया।दुर्गावती ने तीनों मुस्लिम राज्यों को बार-बार युद्ध में परास्त किया।पराजित मुस्लिम राज्य इतने भयभीत हुए कि उन्होंने गोंडवान की ओर झांकना दुर्गावती बड़ी वीर थी।
उसे कभी पता चल जाता था कि अमुक स्थान पर शेर दिखाई दिया है, तो वह शस्त्र उठा तुरंत शेर का शिकार करने चल देती और जब तक उसे मार नहीं लेती,पानी भी नहीं पीती थी दूसरी बार के युद्ध में दुर्गावती ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया और फिर वह कभी पलटकर नहीं आया। महारानी ने 16 वर्ष तक राज संभाला।इस दौरान उन्होंने अनेक मंदिर,मठ,कुएं,बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं।वीरांगना महारानी दुर्गावती साक्षात दुर्गा थी। इस वीरतापूर्ण चरित्र वाली रानी ने अंत समय निकट जानकर अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में मारकर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गईं।
रानी दुर्गावती का पराक्रम कि उसने अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इंकार कर स्वतंत्रता और अस्मिता के लिए युद्ध भूमि को चुना और अनेक बार शत्रुओं को पराजित करते हुए 1564 में बलिदान दे दिया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से आदिवासी समाज की प्रांतीय उपाध्यक्ष नीलकंठ ठाकुर, सामाजिक कार्यकर्ता पुनितराम ठाकुर,अध्यक्ष जागेश्वर ध्रुव,संरक्षक टेश नेताम,आशीष ठाकुर,बहुर सिंह,समाजसेवी मनोज पटेल,अजय,लोकेश,नीलकमल,कांती ध्रुव जोगी ध्रुव,भारत,तुलेश्वर,दुलम बाई,बैसाखी बाई,दुलारी बाई,एवं आदिवासी समाज के लोग उपस्थित थे।